नाबालिग लड़की से विवाह करने पर बाल विवाह निषेध अधिनियम होता है लागू

नाबालिग लड़की से विवाह करने पर बाल विवाह निषेध अधिनियम होता है लागू

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बौंसी/बांका:- किसी भी नाबालिग लड़की से विवाह करने पर बाल विवाह निषेध अधिनियम लागू होता है। जिसके अंतर्गत इसे अपराध घोषित किया गया है। इस अधिनियम के तहत लड़के की शादी की उम्र 21 साल और लड़की की 18 साल तय की गई है। 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने के 2 वर्ष के भीतर बाल विवाह करने वाली लड़की द्वारा अशक्तता की डिक्री प्राप्त की जा सकती है। साथ ही यह नाबालिग लड़कियों से शादी करने को अपराध भी बनाता है। भारत मे नाबालिग लड़की से विवाह करना तो जुर्म है ही उंस से किसी भी प्रकार का यौन सम्बन्ध बनाया जाना भी जुर्म है। बल्कि ऐसे कृत्य को बालात्कार की श्रेणी में रखा जाता है। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) भी 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे पर यौन अपराधों के लिए दंड देता है। धारा 375 का अपवाद (2) 15 वर्ष से कम उम्र की विवाहित लड़कियों द्वारा झेले जाने वाली यौन हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए तय किया गया था। जिसे बाद में रद्द कर दिया गया था। भारत उन देशों में से एक है जो महिलाओं को देवी के रूप में मानते हैं लेकिन बाल विवाह की दर भी सबसे अधिक है। बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 (पीसीएमए) 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाता है और उन्हें दंडित करता है। बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 में बालिका को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है। और पति को एक नाबालिग बालिका से शादी करने के लिए दंडित करता है। जिसे बाद में पीसीएमए द्वारा निरस्त कर दिया गया था। बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए) लड़कियों की शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र 18 वर्ष करने का निर्देश देता है और इससे कम उम्र के विवाह बच्चे के अनुरोध पर भी अमान्य हैं। आईपीसी धारा 363 के तहत एक पुरुष बालक, नाबालिग 16 वर्ष से कम आयु का बच्चा है। 

एक महिला बालक के मामले में, नाबालिग 18 वर्ष से कम आयु का बच्चा है। माँ बाप के खिलाफ शादी करना यानी अपने रिश्तेदारों के खिलाफ जा के शादी करना, आपको वो मान सम्मान कभी नहीं मिलेगा, आप मुसीबत की घड़ी मे मदद के लिए किसे बुलाएंगे सारे लोग आप से दूर ही रहेंगे. वैसे भी प्यार का नशा ज्यादा दिनों तक नहीं रहता, बाद में आप को अपने फैसले पर उम्र भर पछतावा होता रहेगा. भारतीय संस्कृति के अनुसार शादी केवल दो लोगों का ही नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है। ऐसा इसलिए भी जरूरी माना जाता है, क्योंकि जब दो लोग जीवन के नए सफर को शुरू करते हैं, तो उन्हें कई सारी चीजों की समझ नहीं होती है और कई बार गलत फैसलों से शादी टूट जाती है। ऐसे में माता-पिता और परिवार के दूसरे अनुभवी लोग उन्हें ऐसी गलतियों से बचाने और उनके शादीशुदा जीवन को मिलकर खुशहाल और सफल बनाने की कोशिश करते हैं। यही कारण है कि आज भी अरैंज मैरिज में लव मैरिज की तुलना कम तलाक होते हैं। शादी के बाद लड़का-लड़की का जीवन पूरी तरह से बदल जाता है। भले ही दोनों एक-दूसरे को पहले से जानते हो और प्यार करते हो फिर भी शुरुआती दिनों में एक ही घर में साथ रहना मुश्किल होता है। और जब बीच में कोई परेशानी को दूर करने वाला न हो या बांटने वाला न हो तो यह चीज रिश्ते को टूटने का अहम कारण भी बन जाता है। लेकिन यदि शादी के सपोर्ट में माता-पिता हैं, तो वह एडजस्टमेंट को आसान बना देते हैं। क्योंकि वह आपके पार्टनर और उसकी फैमिली को शादी से पहले ही बेहतर तरीके परख लेते हैं। इससे आपको नए माहौल और नए लोगों के साथ घुलने-मिलने में आसानी होती है। हमेशा याद रखिए किसी के साथ आप सिर्फ अपनी आज की खुशी देख पा रहे हैं, लेकिन माता-पिता को शादीशुदा जीवन के उतार-चढ़ाव की समझ है इसलिए वह आपके रिश्ते में आना वाला कल भी देख सकते हैं।

कुमार चंदन,ब्यूरो चीफ,बांका 
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